अगर किसी को कोरोना है तो जाहिर सी बात है उसका टेस्ट हुआ होगा फिर ये पता चला होगा कि वो कोरोना पॉजिटिव है। लेकिन बिहार में एक व्यक्ति ने ऐसा आरोप लगाया है जिससे अजीबो-गरीब स्थिति पैदा हो गई है। भागलपुर जिला में एक मरीज के पति ने आरोप लगाया कि जांच के लिए उसकी पत्नी का बलगम नमूना लिये बगैर ही उसे संक्रमित घोषित कर दिया गया। मरीज के पति ने कहलगांव के माथुरपुर गांव में अपने घर पहुंचकर आरोप लगाया कि उसे चिकित्सा एवं पुलिस अधिकारी एक कोरनटाइन सेंटर में ले गये और वहां अधिकारियों ने जानकारी दी कि उसकी पत्नी संक्रमित पायी गयी है।
उस व्यक्ति ने बताया कि, ‘‘मेरी बेटियों को भी पृथक वास केंद्र में ले जाया गया और वे अब भी वहीं हैं। मुझे छुट्टी दे दी गयी और मुझसे बताया गया कि जांच में मेरे अंदर संक्रमण नहीं पाया गया। लेकिन मेरी पत्नी में संक्रमण की पुष्टि कैसे हो गयी जब उसने कभी नमूना दिया ही नहीं”। उसकी बेटियों ने भी यही बात बताई कि जब तीन मई को अधिकारी उसके घर पर आये तब वे उनसे कहती रहीं कि कुछ गलतफहमी हुई है लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। बच्चियों ने कहा, ‘‘हमारी मां को अलग वार्ड में डाल दिया है और हम यहां अलग पृथक वास केंद्र में रखा गया है।”
इस बात का पूरी तरह से कहलगांव के उपसंभागीय अस्पताल के उप अधीक्षक लाखन मुर्मू ने खंडन किया। उन्होंने इस खबर पर अपनी राय देते हुए कहा कि एक अप्रैल को घर-घर स्क्रीनिंग के दौरान महिला में कोरोना (कोविड-19) का लक्षण दिखाई दिया था। और हमने 1 मई को नमूना लिया और उसे परीक्षण के लिए भेज दिया। महिला को शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है, वहीं महिला के पति ने महिला की उम्र में विसंगति का हवाला दिया और कहा कि आधार कार्ड के अनुसार उसकी पत्नी एक जनवरी, 1985 में पैदा हुई थी जबकि चिकित्सकीय रिकार्ड में उसे 26 साल का बताया गया है।